शून्य पर कविता -17-Mar-2023
शून्य पर कविता
शून्य सी धरती हमारी
शून्य नभ विस्तार है
शून्य ही शुरुआत सबका
शून्य अनंत अपार है
शून्य में सब कुछ समाया
जल थल नभ संसार है
शून्य अकेला तन में बसता
विस्तृत लिए आकार है
शून्य का है खेल निराला
भाषा गणित विज्ञान है
तर्क और चिंतन है मन का
शून्य स्वयं ब्रह्मांड है
शून्य खुद में शून्य होता
शून्य ही स्वभाव है
ना मान रखता है कोई
पर भाव का भराव है
वह खेलता है खेल ऐसा
दाएं बाएं हाथ का
कब बड़े को छोटा कर दे
अंक अपने साथ का
साधते जब लक्ष्य अपना
मन बनाते शून्य है
फिर पहुंचते अंतर्मन से
शून्य से ही शून्य है
शून्य से ही है सृष्टि
शून्य ही सब शून्य है
शून्य ही आधार सबका
अंत सबका शून्य है।
रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी
डॉ. रामबली मिश्र
18-Mar-2023 09:04 AM
शानदार प्रस्तुति
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Abhinav ji
18-Mar-2023 08:11 AM
Very nice 👍
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Reena yadav
18-Mar-2023 07:28 AM
👍👍
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